मोकामा के बादपुर में प्रक्षेत दिवस -सह – प्रशिक्षण कार्यक्रम का हुआ आयोजन
मोकामा के बादपुर में प्रक्षेत दिवस -सह – प्रशिक्षण कार्यक्रम का हुआ आयोजन। (Field day-cum-training program organized in Badpur Mokama)
बिहार।पटना।मोकामा।बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर भागलपुर एवं भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान , कानपुर के तत्वावधान में अखिल भारतीय समन्वित चना और दलहन अनुसंधान परियोजना के के तहत अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रक्षेत दिवस -सह – प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन बादपुर मालपुर में किया गया । कार्यक्रम में बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भागलपुर से डा. पी. के. सिंह , अध्यक्ष, पौधा प्रजनक एवं अनुवांशिकी डा. आनंद कुमार, वैज्ञानिक पौधा प्रजनन(मँसूर एवं खेसारी)एवं डा. संजय कुमार, वैज्ञानिक, पौधा प्रजनन(चना) और भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान , कानपुर से डा. जितेन्द्र कुमार , प्रमुख वैज्ञानिक,मँसूर प्रजनक एवं डा. विश्वजीत मंडल , चना प्रजनक मंचासीन हुये ।
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प्रक्षेत दिवस-प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को चना और दालों की खेती में नवीनतम तकनीकों और प्रथाओं के बारे में व्यावहारिक अनुभव और ज्ञान प्रदान करना था(The objective of the Prakshet Divas-Training Program was to provide practical experience and knowledge to the farmers about the latest technologies and practices in the cultivation of gram and pulses.)
प्रक्षेत दिवस-प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को चना और दालों की खेती में नवीनतम तकनीकों और प्रथाओं के बारे में व्यावहारिक अनुभव और ज्ञान प्रदान करना था। बिहार कृषि विश्वविद्यालय और भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों ने मिट्टी की तैयारी, बीज चयन, रोपण तकनीक, कीट प्रबंधन और कटाई के तरीकों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रदर्शन करते हुए किसानों के साथ अपनी विशेषज्ञता साझा की। फ्रंट लाइन ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम का उद्देश्य अत्याधुनिक अनुसंधान को सीधे खेतों में लाकर अनुसंधान संस्थानों और किसानों के बीच की खाई को पाटना है। ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेकर, किसान सीख सकते हैं कि नई तकनीकों और प्रथाओं को कैसे अपनाया जाए जिससे उनकी फसल की पैदावार और समग्र कृषि उत्पादकता में सुधार हो सके।कुल मिलाकर, बादपुर मालपुर में प्रक्षेत दिवस-प्रशिक्षण कार्यक्रम सफल रहा, जिसमें किसानों को बहुमूल्य अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक कौशल प्राप्त हुए, जिन्हें वे अपने खेतों पर लागू कर सकते हैं। कृषि क्षेत्र में नवाचार और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान संस्थानों और किसानों के बीच यह सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक है। (Field day-cum-training program organized in Badpur Mokama)
डॉ. पीके सिंह ने बिहार के कृषि परिदृश्य में चने की इन विशिष्ट किस्मों के महत्व पर जोर दिया।(Dr. PK Singh stressed the importance of these special varieties of gram in the agricultural scenario of Bihar.)
डा. पी. के सिंह ने इस बार टाल क्षेत्र में बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर द्वारा दिये गये मँसूर(आई.पी.आर 220) और चना (सबौर चना 1 एवं सबौर चना 3) पर विशेष चर्चा की । सबौर चना 1 अगेती प्रजाति है जिसकी बोआई 15 नवंबर और सबौर चना 3 जिसकी बोआई धान कटनी के बाद यानी लेट 15 दिसंबर तक की जा सकती है । डॉ. पीके सिंह ने बिहार के कृषि परिदृश्य में चने की इन विशिष्ट किस्मों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि सबौर चना 1 उन किसानों के लिए आदर्श है जो सीजन की शुरुआत में अपनी रोपाई शुरू करना चाहते हैं, जबकि सबौर चना 3 उन लोगों के लिए बाद में रोपण का विकल्प प्रदान करता है जिन्होंने धान की कटाई में देरी की होगी। इन दो विकल्पों की पेशकश करके, किसान अपनी फसल की उपज को अधिकतम करने और एक सफल फसल सुनिश्चित करने में सक्षम हैं। डॉ. सिंह ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा इन किस्मों में किए गए अनुसंधान और विकास प्रयासों पर भी प्रकाश डाला, जो क्षेत्र में कृषि पद्धतियों में सुधार के प्रति समर्पण को दर्शाता है। कुल मिलाकर, चर्चा ने खेती में इष्टतम परिणामों के लिए फसल की सही किस्म के चयन के महत्व की याद दिलाई। (Field day-cum-training program organized in Badpur Mokama)
डा. विश्वजीत मंडल ने भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान में विकसित चना के बीजों की ससमय किसानों के बीच उपलब्धता की बात कही ।(Dr. Vishwajit Mandal talked about the timely availability of gram seeds developed in the Indian Pulses Research Institute among the farmers.)
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर से आये डा. जितेंद्र कुमार ने इस टाल क्षेत्र में संस्थान द्वारा विकसित आई.पी.आर. 220 पर विशेष जोर दिया और इसके रस्ट रोधी होने के कारण बिमारी रहित होने पर बल दिया । वहीं डा. विश्वजीत मंडल ने भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान में विकसित चना के बीजों की ससमय किसानों के बीच उपलब्धता की बात कही । डॉ. मंडल ने यह सुनिश्चित करने के महत्व पर प्रकाश डाला कि किसानों को उनकी फसल की अधिकतम उपज के लिए सही समय पर उच्च गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध हों। उन्होंने उन्नत बीज किस्मों के विकास और प्रसार में भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान जैसे अनुसंधान संस्थानों की भूमिका पर जोर दिया जो न केवल रोग प्रतिरोधी हैं बल्कि उच्च उपज देने वाली भी हैं। किसानों को ये बीज उपलब्ध कराकर वे अपनी उत्पादकता बढ़ा सकते हैं और अंततः अपनी आजीविका में सुधार कर सकते हैं। डॉ. कुमार और डॉ. मंडल की प्रस्तुतियों ने भारत में कृषि को आगे बढ़ाने और किसानों का समर्थन करने में अनुसंधान और नवाचार की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। (Field day-cum-training program organized in Badpur Mokama)
इस कार्यकर्म में सामाजिक कार्यकर्त्ता चन्दन कुमार ने मुखरता से किसानों की समस्यायों को कृषि वैज्ञानिकों के सामने रखा।(In this program, social worker Chandan Kumar vocally presented the problems of farmers in front of agricultural scientists.)
इस कार्यकर्म में सामाजिक कार्यकर्त्ता चन्दन कुमार ने मुखरता से किसानों की समस्यायों को कृषि वैज्ञानिकों के सामने रखा। वैज्ञानिकों ने किसानों के साथ मोकामा टाल में लगी चने की फसल का भी निरिक्षण किया और महत्वपूर्ण सुझाव बताये। सामाजिक कार्यकर्ता,किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के बीच सहयोग फलदायी साबित हुआ क्योंकि वे किसानों को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों की पहचान करने और व्यावहारिक समाधान प्रदान करने में सक्षम थे। एक साथ काम करके, वे सिद्धांत और व्यवहार के बीच की खाई को पाटने में सक्षम हुए, जिससे अंततः किसानों को लाभ होगा और उनकी आजीविका में सुधार होगा । (Field day-cum-training program organized in Badpur Mokama)
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