स्कूल बाबू राम लखन सिंह ‘क़ानूनी’!
न कभी कानून की पढाई की न ही कभी वकालत की और न ही कभी न्यायलय गए.मगर उस जमाने में जब जयादातर झगडे ,मामले पंचो के द्वारा ही सुलझाए जाते थे,आपका बड़ा ही नाम था, आपकी निष्पक्षता, न्यायप्रियता और साथ में आपकी कठोरता के कारन ही लोग आपको अपना पंच बनाते थे ,आपकी पंचायती से लोग संतुस्ट हो जाते थे.आपके 90 साल के जीवन काल में येसा कोई भी मामला नहीं आया जिसमे कोई पक्ष आपके दिए फैसले से असंतुष्ट रहा हो .सबकी बात आप सुनते थे सारी पहलुओं पर ध्यान रख कर ही आप अपने फैसले देते थे. शायद यही कारन रहा होगा लोगो ने आपको “क़ानूनी “ की उपाधि दी .और प्यार से लोग आपको “कानुंची लखन “ कहने लगे. आपकी न्यायप्रियता और निष्पक्षता के कारन ही सिर्फ मोकामा के लोग ही नहीं मोकामा के आस पास बसे गाऊं के लोग भी आपसे पंचायती करवाते थे,गोसाई गाऊं,घोसवरी,सम्यागढ़,चिंतामन चक,सिखारी चक,आदि गाऊं में आपने बहुत सारे पंचायती किये .
३०-४० के दशक में जब शिक्षा को लोग समय और धन की बर्बादी मानते थे .आपने अपने समाज को शिक्षा पाने के लिए प्रेरित किया .छोटे बड़े सबको पढ़ने के लिए कहा करते थे.आपने कभी किसी स्कूल ,महा विद्यालय में कभी भी अप्ध्यापक या प्रोफ़ेसर के रूप में काम नहीं किया .मगर जब भी मौका मिलता था आप अपने ज्ञान से सबको शिक्षा देते रहे, राम रतन सिंह महा विद्यालय की रूप रेखा में आपका विषेस समर्पण ,या शुरुआती दौर में खुद वर्ग में जाकर छात्रों को पढाना ,महिलाओ और लड़कियों के लिए शिक्षा की पैरवी आप उस समय किया करते थे जिसके कारन बहुत सी महिलाओं ने शिक्षा ग्रहण की. और समाज ने फिर आपको एक नया नाम दिया . स्कूल बाबू जो बाद में “इस्कूल बाबू” हो गया .किसानो को भी खेती के साथ साथ पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे,खुद भी एक किसान रहे ,खेती में नित नए प्रयोग करते रहे .आपका बाग (गाछी) उस समय की सबसे सुन्दर और फलदार था,आपके बाग में फलदार पेड़ जैसे आम, अमरूद,कटहल,निम्बू,महुआ जैसे परम्परागत पेड़ तों थे ही साथ सौफ,मूंगफली,चीकू,सरीफा आदि जैसे भी खेती होती थी.दूर दूर से लोग आपके गाछी को देखने आते थे और आप उन्हें हमेशा कोई न कोई पेड़ पौधा देते थे साथ साथ खेती की उन्नति के उपाय बताते रहे.
आपका जन्म सकरवार टोला मोकामा में बाबू राम बखत सिंह के घर हुआ,सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत पर अपने जीवन के अंत तक कायम रहे .18 दिसंबर 1997 को 94 साल की आयु में आपने अपना देह त्याग किया .
सर्दियों के दिन थे .गंगा मैया बिलकुल सुखी हुई थी .आपके प्रताप को देखते हुए लोग आपको सिमरिया ,बनारस, या गया जी ले जाने की सलाह दे रहे थे,मगर आपकी इच्छा थी की आपका संस्कार कौवा कोल(भुत नाथ ) में ही हो.सब लोग परेशान थे की गंगा में में तों ठेहुना(घुटना) भर पानी भी नहीं है.तों अंतिम संस्कार कैसे होगा.मगर आपकी अंतिम इच्छा पूरी करने हेतु लोग आपको वंहा ले गए .मगर देखते देखते वंहा गंगा भर गई.जैसे सावन भादो (बरसात) का महीना हो.मानो स्वयं गंगा आपको लेने आई हो.लोग तों पहले से ही आपके जाने के गम में बिचलित थे.मगर जब ये वाक्या हुआ तों लोगों की आख पुन्ह भर आई.
इस्कूल बाबू आपकी 15 वि पुन्य तिथि पर मोकामा ऑनलाइन की तरफ से भाव भीनी श्रधांजलि