सरस्वती पुत्र को भाव भीनी क्षर्धांजलि !

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मोकामा प्रणाम ,

आज दिल तो बहुत दुखी है.खबर भी बहुत बुरी है .मगर इस्वर को जो मंजूर हो उसे कौन मिटा सकता है .ये सम्पादकीय लिखते हुए आँखें नम है.यूँ तो एक दिन सबको ही जाना है मगर जिनकी जरुरत धरा को होती है वो लोग कुछ जल्दी ही बुला लिए जाते है .मोकामा ऑनलाइन की और से इस सरस्वती पुत्र को भाव भीनी क्षर्धांजलि

रमेश नीलकमल:-हिंदी साहित्य को अपनी कृतियों से अमर बनाने वाले रेश नीलकमल जी अब हमारे बीच नहीं है .मोकामा की मिटटी मैं जन्मे इस लाल ने हिंदी की जो सेवा की थी इसके लिए इन्हें विद्यावाचस्पति, विद्यासागर तथा भारतभाषाभूषण की उपाधि तक मिली.

21 नवम्बर, 1937 को जनमे, पले-बढ़े बिहार, पटना, मोकामा के ‘रामपुर डुमरा’ गाँव में। पढ़े गाँव में, बड़हिया में, कोलकाता में बी.ए. तक। फिर पटना से बी.एल. एवं प्रयाग से साहित्य-विशारद।

नौकरी की पूर्व रेलवे के लेखा विभाग में। बहाल हुए लिपिक श्रेणी-2 पद पर 07.10.1958 को और सेवानिवृत्त हुए 30.11.1995 (अप.) को ‘कारखाना लेखा अधिकारी’ पद से।

मानदोपाधियाँ मिलीं विद्यावाचस्पति, विद्यासागर तथा भारतभाषाभूषण की।

प्रकाशित पुस्तकें : 10 काव्य, 4 कहानी, 5 समीक्षा, 2 रम्य-रचना, 3 शोध-लघुशोध, 1 भोजपुरी-विविधा तथा 1 बाल-साहित्य, कुल 26 पुस्तकें प्रकाशित।

संपादन : कुल 10 पुस्तकें संपादित। ‘शब्द-कारखाना’ तथा ‘वैश्यवसुधा’ (साहित्यिक पत्रिकाएँ) का संपादन।

पुरस्कृत-सम्मानित हुए मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, प्रेमचन्द पुरस्कार, सरहपा शिखर पुरस्कार, साहित्यसेवा पुरस्कार तथा विभिन्न नौ संस्थानों द्वारा सम्मान से। तीन दर्जन से अधिक ग्रंथों/पुस्तकों में सहलेखन। इनके ‘व्यक्ति और साहित्य’ पर सात पुस्तकें प्रकाशित। 175 पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन तथा ‘शब्द-कारखाना’ एवं ‘वैश्यवसुधा’ त्रैमासिकी का संपादन।

संपर्क : अक्षर विहार, अवन्तिका मार्ग, जमालपुर-811 214 (बिहार)

इनकी सुप्रसिद्ध रचना आप मोकमा ऑनलाइन पर भी पढ़ सकते है

१.चादर तानकर सो गया

2.लौट आओ पापा

3.बुरे वक्त की कविता

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निधन / रमेश नीलकमल

पिछले 60 वर्षों से साहित्य की अनवरत साधना करने वाले और बिहार के साहित्यकारों की एक समूची पीढ़ी का मार्गदर्शन करने वाले वयोवृद्ध कवि, कथाकार, आलोचक और संपादक 76 वर्षीय रमेश नीलकमल का निधन हिंदी साहित्य की एक बड़ी क्षति है। साहित्यिक लघु पत्रिकाओं के वे पुरोधा माने जाते हैं। उनके संपादन में लघु पत्रिका ‘ शब्द कारखाना ‘ का तीन दशक लंबा सफ़र समकालीन साहित्य की एक बड़ी घटना है। विपरीत आर्थिक स्थितियों के बावजूद उनके समर्पित प्रयासों से यह पत्रिका साहित्यिक पत्रकारिता का मीलस्तंभ बनी। उन्होंने दर्ज़नों कृतियों की रचना की जिनमें प्रमुख हैं – एक अदद नंगी सड़क, आग और लाठी, बोल जमूरे, अपने ही खिलाफ़ ( कविता संकलन ), एक और महाभारत, नया घासीराम, अलग अलग देवता ( कथा संग्रह ), समय के हस्ताक्षर, गमलों में गुलाब, किताब के भीतर किताब, कहानियों का सच ( आलोचना ) आदि। मैं व्यक्तिगत तौर पर भी उनका ऋणी रहा हूं। मेरी कविताएं सबसे पहले उन्होंने छापी, मेरा पहला कविता संकलन ‘ कहीं बिल्कुल पास तुम्हारे ‘ उन्होंने प्रकाशित कराई और कविता का ‘ शब्द कारखाना ‘ द्वारा प्रायोजित ‘निराला सम्मान ‘ उन्होंने मुझे प्रदान की। साहित्य के इस एकांत साधक को हार्दिक श्रधांजलि !

Dhruv Gupta

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कवि, कथाकार, संपादक व प्रकाशक रमेश नीलकमल के असामयिक निधन पर एक संस्मरण !

कवि, कथाकार और ’शब्द कारखाना’ पत्रिका के सिद्ध संपादक रमेश नीलकमल के निधन से मर्माहत हूँ..। बिहार में समकालीन लेखन के प्रति उनके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कई कवि व कथाकारों पहचान दी। उनकी पत्रिका ’शब्द कारखाना’ के 27 वें अंक, जो जर्मन साहित्य पर केन्द्रित था का संयोजन करने का अवसर मुझे मिला था। ग्युंटर ग्रास पर मेरे एक आलेख की उन्होंने बेहद सराहना की थी, जब अगले वर्ष ग्रास को साहित्य का नावेल पुरस्कार मिला था..।

रमेश नीलकमल हिन्दी, अंग्रेजी, मगही व भोजपुरी में अपनी रचनात्मक्ता की छाप छोड़ चुके हैं। उनका जन्म- 21 नवम्बर 1937 को बिहार, पटना, मोकामा के ‘रामपुर डुमरा’ गाँव में हुआ था। उन्होंने कोलकाता में बी.ए.,  फिर पटना से बी.एल. एवं प्रयाग से साहित्य-विशारद की थी तथा सेवानिवृत्त ‘कारखाना लेखा अधिकारी’ पद से की। उनकी 10 काव्य कृति, 4 कहानी संग्रह, 5 समीक्षा, 2 रम्य-रचना, 3 शोध-लघुशोध, 1 भोजपुरी-विविधा तथा1 बाल-साहित्य,  लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित हुई तथा 10 से अधिक पुस्तकों का उन्होंने  संपादन भी किया था।  ‘शब्द-कारखाना’  के साथ ही ‘वैश्यवसुधा’ त्रैमासिकी का भी वे संपादन करते थे साथ ही प्रगतिशील सृजनशीलता के नये आयाम की तलाश भी वे ताउम्र करते रहे…।
उनकी बहुचर्चित कालजयी कृति ’आग और लाठी’ के लिए उन्हें 1985 में प्रतिष्ठित मैथिली शरण गुप्त राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी साहित्यिक कृतियों पर मगध विश्वविधालय, भागलपुर विवि. एवं गौहाटी विवि. आदि उच्च शिक्षण संस्थाओं में शोध व अध्ययन कार्य हो रहे हैं…।
उनकी सहजता व आत्मीयता की कई बानगी मेरे हृदय में कायम रहेगी..। मधेपुरा/ सहरसा   स्थित मेरे आवास पर उनका पदार्पण कई बार हुआ था, दिल्ली, हरिद्वार व ऋषिकेश का पर्यटन भी हमने साथ-साथ किया तथा 17 सितं. 2000 को दिल्ली में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में भी हम कई दिनों तक साथ रहे। जमालपुर/ मुंगेर में भी उनका सानिध्य मिला। लगभग  दस वर्ष पूर्व लाल किला के प्राचीर में पिता जी हरिशंकर श्रीवास्तव ’शलभ’ के साथ ली गई उनकी तस्वीर, उनकी स्मृति को समर्पित है..।
अरविन्द श्रीवास्तव,
कला कुटीर,
मधेपुरा (बिहार)
मोबाइल- 9431080862.
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डॉ रमेश चन्द्र नीलकमल के रचना संसार तथा उनसे अनेक बार व्यक्तिगत चर्चा पर आधारित उनकी कृतियों के नामों एवं विचारों को संजोती एक रचना ——–

आसान नहीं होता है  ,’कवियों पर कविता’ लिखना ,
जग में रह कबीर बन जाना ,कीचड़ में कमल सा खिल जाना ।

होता है कोई नीलकमल , कीचड़ में खिल जाता है
बिना देख-रेख माली के , निज पहचान कराता है ।

कलपुर्जों में जीवन बीता  ,’शब्द कारखाना ‘ निर्माण किया ,
साहित्य को रमेश प्रसाद ने , एक नया आयाम दिया ।

कभी पूछता ‘बोल जमूरे’ ,’आग और लाठी ‘ देखी है ,
कभी खडा ‘अपने ही खिलाफ’, ‘कवियों पर कविता’ लिखता है ।

‘गमलों  में गुलाब’ उगाता , ‘राग-मकरंद ‘गाता है ,
‘अलगअलग देवताओं ‘ पर , शब्दों के फूल चढ़ाता है ।

‘काला दैत्य और राजकुमारी ‘की,कथा कहानी कहता है ,
दलित चेतना का प्रतीक ,’नया घासी राम ‘ बताता है ।

‘एक और महाभारत ‘ को, भविष्य में देख रहा,
‘समय के हस्ताक्षर ‘ बन , पुस्तक में लिख देता है ।

मरने से पहले चाहता ,अपनी एक वसीयत लिखना ,
बिना काष्ठ शब्दों के साथ ,तिल -तिल  जलना चाहता है ।

जीऊं जब तक शब्दों के ,संग मर जाऊं तो शब्दों के संग ,
‘किताब के भीतर किताब’ सा ,आज सिमटना वह चाहता है ।

तुलसी- सुर सभी बन जाते ,नहीं कबीर कोई बनाता ,
कमल खिले हैं सारे जग में ,’नीलकमल ‘ कोई खिलता है ।
(डॉ अ कीर्तिवर्धन )

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साहित्य का यह कुशल चितेरा 76  वर्ष की आयु में दिनांक 25 मई 2013 को  हमारे बीच से प्रस्थान कर गया । हिंदी साहित्य जगत को 2 6 मौलिक कृतियों से समृद्ध करने वाले इस महान साहित्यकार की 1 6 सम्पादित पुस्तकें हैं । आप ” शब्द कारखाना” तथा “वैश्यवसुधा ” जैसी प्रमुख  पत्रिका के संपादक रहे हैं ।
आपके कार्य का मूल्यांकन कराती हुई 1 6 पुस्तकें हैं ,3 शोध प्रबंध भी आपके साहित्य की पड़ताल करते हुए आपके कार्य का समग्र मूल्यांकन करने में सफल रहे हैं ।
आपका जन्म 2 1 नवम्बर 1937 को बिहार के रामपुर डुमरा (पटना) में हुआ था। वर्तमान में आप जमालपुर (बिहार) में निवास करते थे । आपके परिवार में 3 पुत्र व 3 पुत्रिया  हैं ।
उनका श्राद्ध कर्म दिनांक 06 जून को जमालपुर (बिहार ) में किया जाएगा ।

इस दुःख की घडी में अपनी संवेदनाये व्यक्त करता हूँ ।

आपके जाने से यहाँ अँधेरा नहीं होगा ,
आपकी यादों के चिराग हर राह जलाएंगे ,
आपके अन्तश से खिले जो फूल साहित्यासागर में ,
उनकी खुशबू से सारे जग को मह्कायेंगे ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
अध्यक्ष
अखिल भारतीय साहित्य परिषद्
(मुज़फ्फरनगर ईकाई )

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