३०-४० के दशक में जब शिक्षा को लोग समय और धन की बर्बादी मानते थे .आपने अपने समाज को शिक्षा पाने के लिए प्रेरित किया .छोटे बड़े सबको पढ़ने के लिए कहा करते थे.आपने कभी किसी स्कूल ,महा विद्यालय में कभी भी अप्ध्यापक या प्रोफ़ेसर के रूप में काम नहीं किया .मगर जब भी मौका मिलता था आप अपने ज्ञान से सबको शिक्षा देते रहे, राम रतन सिंह महा विद्यालय की रूप रेखा में आपका विषेस समर्पण ,या शुरुआती दौर में खुद वर्ग में जाकर छात्रों को पढाना ,महिलाओ और लड़कियों के लिए शिक्षा की पैरवी आप उस समय किया करते थे जिसके कारन बहुत सी महिलाओं ने शिक्षा ग्रहण की. और समाज ने फिर आपको एक नया नाम दिया . स्कूल बाबू जो बाद में “इस्कूल बाबू” हो गया .किसानो को भी खेती के साथ साथ पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे,खुद भी एक किसान रहे ,खेती में नित नए प्रयोग करते रहे .आपका बाग (गाछी) उस समय की सबसे सुन्दर और फलदार था,आपके बाग में फलदार पेड़ जैसे आम, अमरूद,कटहल,निम्बू,महुआ जैसे परम्परागत पेड़ तों थे ही साथ सौफ,मूंगफली,चीकू,सरीफा आदि जैसे भी खेती होती थी.दूर दूर से लोग आपके गाछी को देखने आते थे और आप उन्हें हमेशा कोई न कोई पेड़ पौधा देते थे साथ साथ खेती की उन्नति के उपाय बताते रहे.
आपका जन्म सकरवार टोला मोकामा में बाबू राम बखत सिंह के घर हुआ,सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत पर अपने जीवन के अंत तक कायम रहे .18 दिसंबर 1997 को 94 साल की आयु में आपने अपना देह त्याग किया .
सर्दियों के दिन थे .गंगा मैया बिलकुल सुखी हुई थी .आपके प्रताप को देखते हुए लोग आपको सिमरिया ,बनारस, या गया जी ले जाने की सलाह दे रहे थे,मगर आपकी इच्छा थी की आपका संस्कार कौवा कोल(भुत नाथ ) में ही हो.सब लोग परेशान थे की गंगा में में तों ठेहुना(घुटना) भर पानी भी नहीं है.तों अंतिम संस्कार कैसे होगा.मगर आपकी अंतिम इच्छा पूरी करने हेतु लोग आपको वंहा ले गए .मगर देखते देखते वंहा गंगा भर गई.जैसे सावन भादो (बरसात) का महीना हो.मानो स्वयं गंगा आपको लेने आई हो.लोग तों पहले से ही आपके जाने के गम में बिचलित थे.मगर जब ये वाक्या हुआ तों लोगों की आख पुन्ह भर आई.
इस्कूल बाबू आपकी 15 वि पुन्य तिथि पर मोकामा ऑनलाइन की तरफ से भाव भीनी श्रधांजलि
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Really a heart touching lifestory and a wonderful person from the great land...Thankyou editor