बिहार।पटना।मोकामा।बिहार की राजनीती कुछ येसी जलेबीदार है की बड़े बड़े राजनितिक धुरंधर भी इसे समझ नहीं पाते।पिछले तीन साल में तीन विधानसभा अध्यक्ष बदल चुके हैं।यंहा का हर एक दिन रोमांचक होता है।कब कौन विधायक किस पार्टी को समर्थन देगा खुद वो विधायक भी नहीं जानता । वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जदयू से राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह उम्मीदवार थे वंही कांग्रेस की उम्मीदवार बाहुबली विधायक अंनत सिंह की धर्मपत्नी नीलम देवी थीं । ललन सिंह के समर्थन में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, मुंगेर सांसद वीणा देवी, विधान पार्षद नीरज कुमार, नलिनी रंजन शर्मा उर्फ़ ललन सिंह, राजीव लोचन नारायण सिंह उर्फ़ अशोक बाबू तो नीलम देवी के पक्ष में अनंत सिंह और कार्तिकेय कुमार सिंह उर्फ़ मास्टर साहब थे । इस चुनाव में ललन सिंह ने नीलम देवी को 167937 वोटों से हराकर करारी शिकश्त दी थी ।अब नीलम देवी राजद में रहते हुए राजग गठबंधन को सरकार बनाने में अपना सहयोग देकर एक तरह से नितीश कुमार की सत्ता को स्वीकार कर लिया है । (There was no opposition in Mokama)
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वर्ष 2020 के विधान सभा चुनाव में राजद के अनंत सिंह के मुकाबले जदयू ने ललन सिंह को टिकट न देकर राजीव लोचन नारायण सिंह उर्फ़ अशोक बाबु को मुकाबले में उतारा तो लगा की जदयू अब साफ़ सुथरे छवि के लोगों को आगे बढ़ा रही है । मगर अफ़सोस राजीव लोचन नारायण सिंह भी अनंत को परस्त नहीं कर पाए । लेकिन ये मुकाबला मोकामा से ज्यादा नदामा के निवासियों के लिए यादगार बन गया है क्योंकि राजीव लोचन नारायण सिंह से चुनावी मुकाबला करने के लिए अनंत सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी विवेक पहलवान से दशकों की अपनी सारी दुश्मनी भुला कर दोस्ती कर ली । (There was no opposition in Mokama)
लेकिन मोकामा विधायक को अपने आवास में AK 47 रखने के जुर्म में 10 साल की सजा हो गई तो एकबार फिर 2022 में चुनावी बिगुल बजा । इधर नितीश कुमार भी भाजपा छोड़कर राजद के साथ सरकार बना चुके थे । अंनत सिंह ने अपनी धर्मपत्नी नीलम देवी को मोकामा के मैदान में उतारा ।इधर मौके की ताक में बैठे मोकामा वाले ललन सिंह भाजपा में शामिल हो गये और भाजपा ने उनकी धर्मपत्नी सोनम देवी को टिकट देकर इस उपचुनाव को महामुकबला बना दिया ।मोकामा की जनता ने इस चुनाव में राजग की ताकत भी देखी और भाजपा का भीतरघात भी देखा ।अब एक तरफ नीलम देवी के समर्थन में अनंत सिंह ,विधान पार्षद नीरज कुमार, सांसद ललन सिंह, पूर्व विधायक उम्मीदवार राजीव लोचन नारायण सिंह , कार्तिकेय कुमार उर्फ़ मास्टर साहब, विवेक पहलवान जैसे दिग्गज थे तो दूसरी और सोनम देवी को पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, पूर्व सांसद वीणा देवी, नवादा सांसद चन्दन सिंह, पूर्व प्रत्याशी ललन सिंह का साथ मिला हुआ था । राजग और यूपीए गठबंधन के सभी स्टार प्रचारक मोकामा में अपने अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे थे ।मुंगेर सांसद ललन सिंह और मोकामा विधानसभा के पूर्व प्रत्यशी राजीव लोचन सिंह भी नीलम देवी के पक्ष में प्रचार कर रहे थे। अनंत सिंह एक बार फिर अपराजित ही रहे ।नीलम देवी ने सभी राजनितिक भविष्यवाणी को झुठलाते हुए सोनम देवी को परास्त कर पहली बार विधान सभा में कदम रखा। (There was no opposition in Mokama)
साल 2024 के आरम्भ होते ही नितीश कुमार और लालू यादव के बीच दूरियों की खबर से अखबार रंगा हुआ दिखाई दे रहा था और अंततः जनवरी में नितीश कुमार ने राजद को अलविदा कह एक बार फिर पुराने मित्र भाजपा पर अपना विश्वास जाताया। जब विधानसभा में नितीश कुमार को विश्वास मत हासिल करने के लिए एक एक विधायक को अपने पक्ष में सहयोग करने के लिए जुगाड़ करना पद रहा था तो इस कठिन समय में नीलम देवी ने पार्टी लाइन से अलग हटकर नितीश कुमार की सरकार को सदन में अपना सहयोग किया । उनके इस रवैये से खुद तेजस्वी यादव और लालू यादव तक हैरान रह गए थे । (There was no opposition in Mokama)
आज की तारीख में मोकामा के सभी धुरंधर नेता मोदीमय हो चुके हैं । वर्तमान सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह,नवादा सांसद चंदन सिंह,विधान पार्षद नीरज कुमार , पूर्व सांसद वीणा देवी, मोकामा विधायक नीलम देवी,मोकामा विधान सभा की पूर्व प्रत्याशी सोनम देवी, पूर्व प्रत्याशी राजीव लोचन नारायण सिंह उर्फ़ अशोक बाबू , पूर्व प्रत्याशी नलिनी रंजन शर्मा उर्फ़ ललन सिंह, पूर्व प्रत्याशी कन्हैया सिंह, बलिया के पूर्व सांसद सूरजभान सिंह सहित सभी छोटे मोटे नेता जो राजनीती की चाहत पाले हुए हैं सभी सत्ता पक्ष के साथ भागीदार हैं । अगर विपक्ष की और देखा जाय तो एकमात्र नेता कार्तिकेय कुमार सिंह उर्फ़ मास्टर साहब ही बचे हुए हैं ।
जब यही नेता विपक्ष में थे तो अक्सर स्वास्थ ,शिक्षा ,रोजगार ,पेयजल, मोकामा टाल,भ्रष्टाचार आदि के मुद्दे जो उठाते रहते थे ।अब ये सभी मुद्दों की राजनीती करने वाला कोई नहीं बचा है क्योंकि सभी नेता मोदीमय हो चुके हैं ।अब जनता भी जानती है की वोट वो चाहे किसी भी उम्मीदवार या पार्टी के नाम पर देगी कब कोई उनके मतदान को रद्दी का टुकड़ा बना देगा कोई नहीं जानता । बिहार के साथ साथ मोकामा की राजनीति इतनी कडवी और विषैली हो चुकी है की करैला और धतुरा भी शरमा जाय । खैर जिन्दावाद करना और मतदान करना जरूरी हो या मजबूरी मोकामा का भला ये नेता क्या करेंगे ये सब जानते हैं ।
(There was no opposition in Mokama)
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