सामंतवादी माहौल ने एक रिक्शा चालक को कवि बना दिया.जिला स्तर पर ही सही ,लेकिन उनकी एक पहचान है .बाढ़ कोर्ट में एडवोकेट लिपिक (ताईद) के रूप में कार्यरत भाई बालेश्वर की पहचान एक मगही कवि के रूप में ज्यादा है.
विद्रोही तेवर वाले भाई बालेश्वर का बाल्यकाल मोकामा में बीता. अपनी नानी माँ के घर में एकलौते होने की वजह से प्यार इतना मिला की सामंती संस्कार वाले लोगो से टकराने पर अमादा हो गए .मैट्रिक पास करते ही पत्नी का बोझ सर पर आ गया .वे फरक्का बेरेज में काम करने चले गए .लेकिन जसे ही इन्हें पता चला की इनकी पत्नी सुता मिल में काम कर रही है .वो वापस आ कर रिक्शा चलने लगे .इसी बीच वो तत्कालीन संचार विभाग के निरीक्षण विजन जी के संपर्क में आये और रिक्शा चालक से मगही कवि बन गए .तब से इनका लिखना जारी है .
भाई बालेश्वर को 1994 में बिहार् दलित साहित्य अकादमी सम्मलेन द्वारा परश्सित पत्र दिया गया .1995 में इन्हें मगही विकास परिसद्द्वारा ‘मगध रत्न से सम्मानित’किया गया.२००१ में तत्कालीन सांसद विजय कृष्ण द्वारा और २००५ अं अनुमंदाल्धिकारी वंदना प्रियदर्शी द्वारा परश्सित पत्र दिया गया.आभाव ग्रस्त होने के वावजूद मगही कवि भाई बालेश्वर के लेखन को तब बल मिलता है जब मंच से वे कविता पाठ करते है और तालियों की गडगडाहट सुनने को मिलती है. ‘हम टाल के करिया माटी ही’,दुशासन का दालान ,गरीबी भ्रस्टाचार,भेंस के पोता,जुल्मी सीमा लाँघ देलक,हमर मोछ की तोहर मोछ ,समेत सेकडो कविता लिखने वाले मगही कवि भाई बालेश्वर को मलाल है की उन्हें जिला स्तर पर तो सम्मान तो मिला लेकिन राज्य या राष्टीय स्तर पर नहीं इस मगही लेखक को भले ही बड़ा मंच नहीं मिला लेकिन इनकी लेखनी का विषय हमेशा व्यापक रहा …..
भाई बालेश्वर जी आप मोकामा के करिया मिटटी के लाल है हमें आप पर नाज़ है
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