Housing scheme became a curse Part-1
बिहार।पटना।मोकामा।मोकामा में प्रधानमंत्री आवास योजना गरीबों के लिए अभिशाप और अमीरों के लिए रेवड़ी साबित हो रही है। गरीबों गुरबों की सबसे मुख्य जरूरत की चीज है रोटी ,कपड़ा और मकान । रोटी कपड़ा का जुगाड़ तो गरीब किसी तरह कर लेता है परन्तु आवास के लिए उसे हमेशा सालों मेहनत करना पड़ता है ।इसी मजबूरी को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अप्रैल, 2016 को प्रधानमंत्री आवास योजना लॉन्च किया था जिसके तहत गरीब गुरबों को दो लाख की राशी दी जा रही थी ताकि देश का कोई भी गरीब बिना छत के न रहे । (Housing scheme became a curse Part-1)
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गरीबों मगर बड़े अफ़सोस के साथ लिखना पड़ता है यह महत्वकांक्षी योजना सरकारी बाबुओं और नेताओं को अमिर बना रही है । इस पहल का उद्देश्य गरीबों के लिए किफायती आवास उपलब्ध कराना था, लेकिन ऐसा लगता है कि मोकामा में भ्रष्टाचार और अनैतिक प्रथाओं ने इसके नेक इरादों पर ग्रहण लगा दिया है।यह तथ्य कि सरकारी अधिकारी और जन प्रतिनिधि कथित तौर पर इस योजना से आर्थिक रूप से लाभान्वित हो रहे हैं, बेहद परेशान करने वाली बात है। यह न केवल कार्यक्रम के उद्देश्य को कमजोर करता है बल्कि संसाधनों को उन लोगों से दूर करके सामाजिक असमानता को भी कायम रखता है जिन्हें उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है – गरीब नागरिक जिन्हें आवास की आवश्यकता है। (Housing scheme became a curse Part-1)
यह स्थिति भारी भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है। केंद्र और राज्य सरकार को व्यक्तिगत लाभ के लिए इस योजना का शोषण करने में शामिल लोगों को जवाबदेह ठहराने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। इसमें कार्यान्वयन प्रक्रिया की निगरानी करने, पारदर्शिता सुनिश्चित करने और धन या संसाधनों के किसी भी दुरुपयोग को रोकने के लिए नियमित ऑडिट करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना करनी चाहिए। (Housing scheme became a curse Part-1)
मोकामा में अगर सचमुच किसी जरुरतमन्द को आवास योजना का लाभ मिला भी है तो उसके मन में यह बात कही बैठी हैं कि उन्हें घर हक़ के रूप में नहीं बल्कि रिश्वत और अहसान के रूप में मिला है।मोकामा में आवास योजना का लाभ मिलने की मुख्य शर्त है कि लाभार्थी को किसी सभापति, उपसभापति,मुखिया, वार्ड पार्षद,कर्मचारी , सांसद, विधायक, एमएलसी या मुखिया का रिश्तेदार या किसी तरह का संबंध होना जरूरी है। दूसरी शर्त है कि उसे मिलने वाली रकम का एक बड़ा हिस्सा दलाल, कर्मचारी या नेता को देना होगा । (Housing scheme became a curse Part-1)
प्रधानमंत्री आवास योजना में जन प्रतिनिधियों, सरकारी बाबुओं (नौकरशाहों) और दलालों के बीच गहरी सांठगांठ भ्रष्टाचार को रोकने में इस प्रणाली की प्रभावशीलता के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा करती है। आधार कार्ड को शुरुआत में प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करके, विभिन्न सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करके भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में पेश किया गया था।इस योजना में पारदर्शिता बांये रखने के लिए लाभुकों को अपना आधार देना जरूरी है । परन्तु ये जालसाज बड़ी आसानी से इस अचूक प्रणाली के भीतर भी, नामों और तस्वीरों में बड़ी मात्रा में हेरफेर कर चुके है। यह हेरफेर उस उद्देश्य को कमजोर करता है जिसके लिए आधार बनाया गया था – भ्रष्टाचार को खत्म करना और यह सुनिश्चित करना कि लाभ इच्छित प्राप्तकर्ताओं तक पहुंचे। (Housing scheme became a curse Part-1)
सरकारी बाबुओं और दलालों के साथ-साथ जनता के हितों की सेवा के लिए चुने गए जन प्रतिनिधियों की भागीदारी एक प्रणालीगत मुद्दे को उजागर करती है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यह ऐसे व्यक्तियों के एक नेटवर्क का सुझाव देता है जो व्यक्तिगत लाभ के लिए या भ्रष्ट प्रथाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए आधार प्रणाली के भीतर खामियों का फायदा उठाते हैं। (Housing scheme became a curse Part-1)
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