डॉ बैद्यनाथ शर्मा का जन्म दिनांक २७ अगस्त १९३६ को मगध साम्राज्य की गौरवशाली धरती पटना जिले के मोकामा सकरवार टोला में हुआ . गंगा(नदी) से बेहद लगाव था .बुजुर्गों ने प्यार से इनका नाम बच्चा रख दिया और बड़े होकर भी ये बच्चा बाबु के नाम से जाने जाते रहे गुल्ली डंडा और कब्बडी इनका प्रिय खेल था. इनके पिता पंडित केशव शर्मा का बहुत बड़ा व्यक्तित्व था जिनका असर बच्चा बाबु पर सीधे पड़ा .मद्य विद्यालय में पहली बार शिक्षक बने और फिर कभी पीछे मुड कर नहीं देखा .इसके बाद राम रतन सिंह महाविद्यालय में व्याख्याता बने.हिंदी भाषा पर इनकी पकड़ जादुई थी इसलिए इन्हें मगध विश्व विद्यालय में हिंदी का विभ्गाधय्क्ष्य (HOD) बनाया गया .इन्होने भी इसकी पद की गरिमा को अपने अनुभव और ज्ञान से ऊपर उठाया .छात्र जीवन से ही जनसंघ से जुड गए थे जबकि इनके पिता कट्टर कांग्रेसी थे पर इन्होने अपने तर्क और ज्ञान से अपने पिता का भी दिल जीत लिया .५० से भी ज्यादा विद्यार्थी को पी. एच. डी.(P.H.D) करवाया .हजारों युवाओ का मार्गदर्शन किया .मृत प्राय विद्यार्थी हिंदी पुस्तकालय को पुन्ह नया जीवन दान देने में इन्होने अहम भूमिका निभाई. विद्यार्थी हिंदी पुस्तकालय के तत्वाधान में आर आर एस कोलेज में जब मुख अतिथि के तौर पर राज्यपाल ए आर किदवई आये तो बच्चा बाबु ने स्वागत भाषण दिया जिनकी विद्वता देखकर राज्यपाल महोदय भी दंग रह गए. उन दिनों राम मंदिर निर्माण का दौर था .आडवानी जी रथ यात्रा पर निकले थे तो उन्होंने बच्चा बाबु को बुलवाया था .और जब आडवानी जी ने उनका भाषण सुना तो तो वो बड़े आप्यायित हुए की पार्टी में येसे भी विद्वान है.
हिंदी भाषा में भी इनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा.”नूतन हिंदी व्याकरण और रचना “ इनकी हिंदी व्याकरण पर लिखी बहुत ही सरल पुस्तक है जिसे पढकर कोई भी हिंदी व्याकरण आसानी से सीख सकता है. अख़बारों और पत्रिकाओं में इनके लेख अक्सर छपते थे.इनकी यही गुणों के कारन एक बार भारत सरकार ने इन्हें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधि करने के लिए भेजा जिन्हें इन्होने बखूबी अंजाम दिया. डॉ बैद्यनाथ शर्मा न केवल बिहार बल्कि भारत के जाने माने साहित्यकार थे. २७ दिसंबर २००९ रविवार की सुबह उन्होंने अपनी अंतिम साँस ली .आपके गौरव को सलाम किया तत्कालीन मुख्यमंत्री बिहार नितीश कुमार ने और मोकामा रेफरल अस्पताल का नाम आपके नाम पर डॉ. बैद्यनाथ शर्मा रेफरल अस्पताल मोकामा कर दिया . धन्य है मोकामा के लाल जिन्होंने अपनी लेखनी के बल पर अपनी मिटटी का नाम रौशन किया. बच्चा बाबु को सत् सत् नमन..
(सौजन्य आशुतोष कुमार ‘आर्य’)
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