चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं
चाह नहीं सम्राटों के सिर पर हे हरि ! डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं, भाग्य पर इठलाऊं
मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर देना तुम फ़ेंक
मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक।
यह अतिश्योक्ति नहीं होगी की ‘मैथिलीशरण गुप्त’ की ये पंक्तियाँ मोकामा के लाल चंद्रशेखर बाबू के जीवन पर बिलकुल सटीक बैठतीं हैं। आजादी के आन्दोलन में अपने घर परिवार की परवाह किये बिना चंद्रशेखर बाबू ने अपनी युवावस्था को देश सेवा में झोंक दिया था। जेल की चारदिवारी चंद्रशेखर बाबू के लिए दूसरे घर के रूप में परिणित हो गयी थीं और आजादी के आन्दोलन में सक्रियता ही जीवन का मुख्य लक्ष्य।
देश सेवा और राष्ट्रप्रेमी दीवाने चंद्रशेखर बाबू का जन्म मोकामा के मोलदियार टोला में वर्ष 1908 में हुआ था। बाबू सिंहेश्वर सिंह की इकलौते बेटे चंद्रशेखर बाबू का लालन पालन राजकुमारों जैसा किया गया था। उस वक्त के प्रमुख विद्यालयों में शुरूआती शिक्षा के बाद कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज से हायर सेकेंडरी की पढाई पूरी की। एक जमींदार परिवार में पैदा हुए चंद्रशेखर बाबू ने तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी के सेनानियों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आन्दोलनों का नेतृत्व करना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने आर्थिक रूप से भी स्वतंत्रता आन्दोलन में भरपूर मदद पहुचाई। उस वक्त धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वाले सैंकड़ों मील में कोई कोई होते थे और चंद्रशेखर बाबू अंग्रेजी हुकूमत से सामने अपने बातों को अंग्रेजी में ही रखते थे। कई आंदोलनों की अगुआई करने वाले चंद्रशेखर बाबू वर्ष 1921, 1930 और 1942 में कई महीनों तक जेल में भी रहे। यहाँ तक की चंद्रशेखर बाबू का विवाह भी वर्ष 1930 में जेल से जमानत पर रिहा करा कर ही किया गया था।
गया जिले के ओसे में एक प्रसिद्ध जमींदार परिवार की इकलौती बेटी द्रोपदी के साथ चंद्रशेखर बाबू का विवाह वर्ष 1930 में हुआ था। ससुराल में मिली 2000 बीघा जमीन चंद्रशेखर बाबू ने उस वक्त जरुरतमंदों में दान कर दी थी। आजादी के आन्दोलन में सक्रिय रहने के कारन वे अपनी पत्नी के टीवी रोग का उपचार भी ठीक से नहीं करा पाए जिस कारण अल्पआयु में ही उनकी पत्नी श्रीमती द्रोपदी देवी का निधन हो गया। चंद्रशेखर बाबू के इसी दानवीर स्वाभाव के कारण उनके पिता बाबू सिंहेश्वर सिंह ने अपने भतीजे बाबू छोटे नारायण सिंह को मालिकाना सौपा था। पत्नी के गुजर जाने के बाद सभी ने उनसे फिर से विवाह करने का सुझाव दिया लेकिन राष्ट्रभक्ति में लीन चंद्रशेखर बाबू आजादी के आन्दोलन में ही मशगूल रहे।
आजादी के बाद वर्ष 1952 में चंद्रशेखर बाबू ने विधान सभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन मामूली अंतर से जीत से कुछ कदम दूर रह गए। आजादी के बाद मोकामा और बिहार सहित राष्ट्र की उन्नति में लगातार सक्रिय रहे चंद्रशेखर बाबू वर्ष 1976 के जेपी आन्दोलन में एक बार भी फिर से सक्रिय हुए और एक बार फिर से राष्ट्रसेवा के लिए जेल गए। इस दौरान 19 महीने तक पटना के फुलवारीशरीफ जेल में रहने के बाद उन्होंने कभी भी जमानत की अर्जी नहीं दी और सरकार की ओर से आदेश आने के बाद ही वे जेल से बाहर आये।
जेल से आने के बाद चंद्रशेखर बाबू ने एक बार फिर से मोकामावासियों की इच्छा पर विधानसभा चुनाव लड़ा और मात्र 271 वोट के अंतर से हार गए। इस चुनाव में पुरे मोकामा के लोगों ने संगठित होकर चंद्रशेखर बाबू के पक्ष में मतदान किया था। अपने जीवन काल में राष्ट्र सेवा करते हुए उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई, राज नारायण, जगजीवन राम आदि के साथ मिलकर कार्य किया। बाद के वर्षों में लालू यादव से लेकर नितीश कुमार तक उनसे राजनितिक सलाह लेते रहे।
राष्ट्र सेवा के दीवाने चंद्रशेखर बाबू का निजी जीवन भी काफी सरल था। दयालु प्रविर्ती के चंद्रशेखर बाबू शाकाहारी भोजन के शौक़ीन थे। अमरुद, सेव, पपीता, केला उनके प्रिय फल थे। भगवान विष्णु के भक्त चंद्रशेखर बाबू सुख सागर का नित्य पाठ करते थे। अलग अलग लोग अक्सर उनके पास अपनी परेशानियों को लेकर आते थे और सभी की हर संभव मदद भी वे किया करते थे।
राष्ट्र सेवा और राजनीती में अलग दिशा के लिए चिन्हित हुए चंद्रशेखर बाबू का जीवन हमेशा ही मोकामा के लोगों और उनसे जुड़े अन्य लोगों के लिए प्रेरणासप्रद रहा। जब भारत सरकार ने स्वतंत्रता आन्दोलन से सेनानियों और उनके परिवार जनों को पेंशन और अन्य सुविधाएँ देनी शुरू की तो उस वक्त चंद्रशेखर बाबू ने विनम्रता पूर्वक सरकार की इस पेशकश को ठुकरा दिया था। बाद में स्वतंत्रता सेनानियों तक सरकार की इस पहल को पहुचाने के लिए कार्य कर रहे पंडित शीलभद्र याजी जब चंद्रशेखर बाबू के पास सरकार की उनके लिए विशेष पेशकश लेकर पहुचे तो उसे भी चंद्रशेखर बाबू ने आदरपूर्वक अस्वीकार कर दिया था। उनका जीवन सदा मोकामा की उन्नति के लिए समर्पित रहा। 1 नवम्बर 1993 को चंद्रशेखर बाबू का निधन मोकामा और आसपास के लिए सामूहिक शोक बना। उनके अंतिम संस्कार हजारों लोगों ने हिस्सा लिया था। चंद्रशेखर बाबू का जीवन सदा ही मोकामावासियों के लिए अनुकरणीय है और मोकामा अपनी इस धारित्री पर हमेशा गर्व करती है।
चंद्रशेखर बाबू की प्रसिद्धि और अनुकरणीय जीवन का प्रमाण वर्तमान में मोलदियार टोला में संचालित चंद्रशेखर बाबू पुस्तकालय के रूप में हम सब के बीच है।
(चंद्रशेखर बाबू के सुपुत्र श्री वीरेंद्र प्रसाद सिंह और सुपौत्र डॉ रंजीत कुमार तथा अन्य साक्ष्यों पर आधारित)
मोकामा के गरीबों को मुँह चिढ़ाती आवास योजना।(Housing scheme irritating the poor of Mokama) बिहार।पटना।मोकामा।…
आने वाले तीज त्योहारों को लेकर प्रशासन ने जारी किया नोटिफिकेशन । (Administration issued notification…
वार्ड 23 अवस्थित बहुप्रतीक्षित बोरिंग जनता को समर्पित । (The much awaited boring located in…
मोकामा को गौरवान्वित करने वाले छात्रों को किया गया सम्मानित । (Students who made Mokama…
मोकामा में पहली बार फ्री फायर टूर्नामेंट आयोजित । (Free Fire tournament organized for the…
भोजपुर के डीएसपी राकेश रंजन निलंबित। (DSP Rakesh Ranjan suspended) बिहार।पटना।मोकामा। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha…
View Comments
मोकामा के लाल को मोकामा ऑनलाइन की और से भाव भीनी क्षर्धान्जली....
great personality....
Dreams come true; without that possibility, nature would not incite us to have them.
SADAR NAMAN
unforgettable personality......par mujhe admin se ye shikayat hai ki agar unhone ise mokama online ka naam diya hai to ye ek tola vishesh na bane...aur pure mokama ko samarpit ho...aur ise sabon ko bare m prastut karna chahiyea..