Nitish's policy is heavy on everyone's politics
बिहार।पटना।मोकामा।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जदयू की कमान संभालने के बाद से लालू प्रसाद की चुप्पी और तेजस्वी यादव की रद्द हुई विदेश यात्रा यह बताने के लिए काफी है कि जदयू में क्या हुआ है या भविष्य में क्या हो सकता है, इससे राजद अनजान नहीं है। लालू राजनीति के बड़े नेता माने जाते हैं, लेकिन नीतीश कुमार के इस कदम से यह साबित हो रहा है कि सिर्फ विधायकों और सांसदों की संख्या के आधार पर जेडीयू की ताकत का अंदाजा लगाना 100 फीसदी सही नहीं होगा। (Nitish’s policy is heavy on everyone’s politics)
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एक अनुभवी राजनेता के रूप में लालू प्रसाद सत्ता की गतिशीलता की जटिलताओं और रणनीतिक चुप्पी के महत्व को समझते हैं। इन घटनाक्रमों के बीच उनका चुप रहने का फैसला कई बातों का संकेत दे सकता है।सबसे पहले, यह संकेत दे सकता है कि वह नीतीश कुमार के कार्यों को ध्यान से देख रहे हैं और अपना कदम उठाने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे हैं। लालू राजनीतिक परिदृश्य का विश्लेषण कर रहे होंगे और आकलन कर रहे होंगे कि जेडीयू के भीतर सत्ता में यह बदलाव उनकी अपनी पार्टी, राजद को कैसे प्रभावित कर सकता है। (Nitish’s policy is heavy on everyone’s politics)
लालू यादव और नीतीश कुमार की राजनीतिक चालों की तुलना करें तो अपने को छोटा भाई बताने वाले नीतीश हमेशा लालू पर भरी पड़े हैं। चाहे वह वर्ष 2005 में लालू परिवार के शासन का अंत हो या 2022 में नये सिरे से रखी गई जेडीयू-आरजेडी की दोस्ती की नींव। हर बार नीतीश ही विजेता रहे और राजनीति के धुरंधर लालू को मात खानी पड़ी।राजनीतिक क्षेत्र में नीतीश कुमार द्वारा लगातार लालू यादव को पछाड़ने का यह पैटर्न उनके संबंधों और उनकी संबंधित रणनीतियों के बारे में कई दिलचस्प सवाल उठाता है। लालू पर नीतीश की बार-बार जीत की एक संभावित व्याख्या उनकी चतुर राजनीतिक कौशल और बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलने की क्षमता को दी जा सकती है। (Nitish’s policy is heavy on everyone’s politics)
सबसे पहले, 2005 में लालू परिवार के शासन का अंत बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। कई वर्षों तक राज्य में एक प्रमुख ताकत रहे लालू यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिसके कारण उन्हें सार्वजनिक पद संभालने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे नीतीश कुमार, जो उस समय विपक्ष का हिस्सा थे, के लिए खुद को एक स्वच्छ और कुशल विकल्प के रूप में पेश करके सत्ता में आने का अवसर पैदा हुआ।नीतीश ने इस पल का फायदा उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन किया, जिससे उन्हें अतिरिक्त समर्थन और संसाधन मिले। इस गठबंधन ने उन मतदाताओं से अपील की जो लालू के शासन से निराश थे और बदलाव की मांग कर रहे थे।नीतीश ने लालू यादव की पार्टी आरजेडी की हालत इतनी पतली कर दी कि 10 साल तक पूरा परिवार राजनीतिक वनवास में रहा। (Nitish’s policy is heavy on everyone’s politics)
लालू ने लालच देकर 2015 में नीतीश को साथी तो बनाया, लेकिन 2017 आते-आते नीतीश ने लालू को पटखनी दे दी। राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले लालू प्रसाद कभी नीतीश की चाल को समझ नहीं पाए। हालाँकि, लालू की योजना विफल हो गई क्योंकि नीतीश ने उनके गुप्त उद्देश्यों को भांप लिया। अपने चतुर राजनीतिक कौशल के लिए जाने जाने वाले नीतीश को एहसास हुआ कि लालू के साथ गठबंधन करने से केवल उनकी अपनी प्रतिष्ठा खराब होगी और बिहार की प्रगति में बाधा आएगी। वह समझते थे कि लालू की भ्रष्ट आचरण और भाई-भतीजावाद राज्य के विकास के लिए हानिकारक थी।लालू की चाल के आगे झुकने के बजाय, नीतीश ने गठबंधन से अलग होने और अलग सिद्धांतों के साथ नई सरकार बनाने का फैसला किया। इस कदम ने कई राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्यचकित कर दिया, जिन्होंने उम्मीद की थी कि नीतीश लालू के प्रति वफादार रहेंगे।नितीश कुमार ने 2017 में एकबार फिर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली । लालू से अलग होने का नीतीश का फैसला बिहार की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। लोगों ने उनकी सत्यनिष्ठा और सकारात्मकता लाने के दृढ़ संकल्प की सराहना की।लेकिन निराश लालू यादव ने नितीश कुमार को एक नाम दिया “पल्टूराम ” जो नितीश कुमार की छवि को धूमिल करने के लिए काफी था । (Nitish’s policy is heavy on everyone’s politics)
सत्ता के शीर्ष पर बैठने वाले नितीश कुमार साल 2020 के विधानसभा में मात खा गये और सबसे छोटी पार्टी बनकर रह गई जदयू । मगर नितीश कुमार की जदयू की सहायता के बिना न भाजपा न राजद ही सरकार बना सकती थी । मजबूरन ही सही एक बार फिर नितीश बिहार के मुख्यमंत्री बने। परन्तु 2022 आते आते नितीश कुमार का भाजपा से मोहभंग हो गया और वह एक बार फिर राजद के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे । राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले लालू प्रसाद कभी नीतीश की चाल को समझ नहीं पाए। तभी तो 2022 में उन्होंने नीतीश को साथ ले आये ।अब जब नितीश कुमार एकबार फिर जदयू के राष्टीय अध्यक्ष बने हैं तो राजद भी सकते में हैं। लालू अपने बेटे तेजस्वी को सीएम बनाना चाहते थे उन्होंने जदयू को राजद में विलय करने की भी तैयारी कर ली थी। नीतीश कुमार विधायकों की कम संख्या की वजह से भले मजबूरी में बने सीएम हैं, लेकिन उनका सूचना तंत्र काफी सक्रिय है। राजनीतिक तिकड़म की तमाम गोपनीय सूचनाएं नीतीश को अपने गुप्तचरों से समय रहते मिल जाती हैं।उन्होंने जदयू की कमान अपने हाथों में लेकर पार्टी को मजबूत बनाने की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है। नीतीश जो मैसेज आरजेडी को देना चाहते थे, वह तो दिया। अब आगे वे क्या कर सकते हैं, यह महत्वपूर्ण पहलू है। नीतीश की पहली कोशिश होगी कि वे एनडीए में लौट जाएं। शायद इसकी पहल उन्होंने शुरू भी कर दी है। हफ्ते भर से भाजपा की बिहार प्रदेश इकाई के नेताओं का बदला-बदला सुर तो इसी ओर इशारा कर रहा है। (Nitish’s policy is heavy on everyone’s politics)
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