संपादकीय

मर्दों का नहीं मुर्दों का शहर है मोकामा-आनंद मुरारी

मर्दों का नहीं मुर्दों का शहर है मोकामा-आनंद मुरारी । (Mokama is a city of dead people not of men)

बिहार।पटना।मोकामा।26-03-2025। किसान नेता आनंद मुरारी जी ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव शेयर करते हुए लिखा है । सच बहुत कड़वा होता है। “बात 2012 की है,मोकामा में लगभग 8-9 दशक से स्वास्थ्य सेवा देने वाली नाजरेथ अस्पताल के प्रशासन ने अचानक से अस्पताल को बंद कर दिया।नाजरेथ अस्पताल आजाद भारत में PMCH के बाद बिहार का दूसरा बड़ा अस्पताल था।करीब 70 एकड़ जमीन किसानो से लेकर इसे बनाया गया था।आज भी इस जमीन का मालिकाना हक बिहार सरकार का है। तब मोकामा के गिने चुने लोग इक्ट्ठा होकर “नाजरेथ बचाओ संघर्ष समिति” का गठन किए।सेवानिवृत्त अभियन्ता रामशरण सिंह के संयोजन में सेवानिवृत्त व्याखाता उपेन्द्र प्रसाद सिंह को समिति का अध्यक्ष बनाया गया। मैं और व्याख्याता सुधांशु शेखर सबसे युवा सदस्य थे।कार्यक्रम की रूप-रेखा हम दोनो ही तय करते थे।एक कार्यक्रम बना कि अमुक दिन को मोकामा थाना चौक पर 11 बजे दिन में एकत्रित होना है और वहाँ से जुलूस की शक्ल में मोकामा बाजार होते,गौशाला रोड होते नाजरेथ गेट पर धरना देना है।29 जुलाई 2012 को दिन के 11 बजे का थाना चौक मोकामा पर आने का आमंत्रण मोकामा के अलावा आसपास के गांव में भी प्रबुद्ध जनों को दिया गया था।बड़े पैमाने पर जनसंपर्क किया गया था। (Mokama is a city of dead people not of men)

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उस दिन सुबह रिक्शा पर बंधा माईक नियत समय पर पहुँच गया। (That morning the mike tied to the rickshaw arrived on time)

उस दिन सुबह रिक्शा पर बंधा माईक नियत समय पर पहुँच गया।हमलोगों का साथ देने बगैर आमंत्रण के इन्द्र देव भी आ गए और आमंत्रित जनो में इक्का दूक्का ही आ पाए। कम संख्या के कारण वे भी दाएं बाएं हो गए मगर बारिश में भी जुलूस निकली।जुलूस में दो लोग थे मैं नारा लगा रहा था और देवेन्द्र प्रसाद सिंह (देवन दा) साथ दे रहे थे।जुलूस थाना चौक से प्रधान सड़क होते बाजार चौक पहुंची।वहाँ दो साथी अध्यक्ष उपेन्द्र दा और कृष्ण देव प्रसाद सिंह (बबन दा) साथ हुए। जुलूस बाजार चौक होते,गौशाला रोड होते नाजरेथ गेट तक पहुंची। (Mokama is a city of dead people not of men)

धरनास्थल पर धीरे धीरे लोग पहुंचने लगे।(Slowly people started arriving at the protest site)

धरनास्थल पर धीरे धीरे लोग पहुंचने लगे।मराॅची से काॅ शिवशंकर शर्मा,पुर्व सांसद सुरज सिंह,नलनी रंजन शर्मा सहित कई लोग पहुंचे।वहाँ भी संख्या संतोषजनक नही थी।मैं अपने संचालन संबोधन में उपस्थित साथियों को आगाह किया कि…… ” हम मुर्दा की बस्ती में अस्पताल खुलवाने आए है” आज भी स्थिति वही है।मूक-बधिर मांस के पुतले है यहाँ के लोग।गिद्ध और गीदड़ नोंच नोंच कर खा रहे है इन्हे मगर शिकन तक नही है इनके हाव-भाव में।” (Mokama is a city of dead people not of men)

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